वन विभाग की चुप्पी ने बढ़ाया शक, भ्रष्टाचार की हरी झंडी में जारी विनाश का खेल



बिलासपुर ढेका गांव में बंद पड़ी एगियो पेपर एंड इंडस्ट्रीज़ लिमिटेड के भीतर और आसपास अवैध पेड़ कटाई का खेल खुलेआम चल रहा है। दिन में मशीनें और कुल्हाड़ियाँ चलती हैं, और रात होते ही ट्रैक्टरों में भरकर लकड़ी का माल बाहर भेजा जाता है। बताया जा रहा है कि कटे हुए वृक्षों को देवरीखुर्द के एक लकड़ी टाल में बेचा जा रहा है।स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि यह सिलसिला कई दिनों से जारी है, और सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि यह सब वन विभाग की नाक के नीचे हो रहा है। ग्रामीणों ने कई बार शिकायतें कीं, वीडियो सबूत तक दिए, लेकिन न अधिकारी पहुंचे, न कार्रवाई हुई। सवाल उठता है कि क्या विभाग ने जानबूझकर आंखें मूंद ली हैं या फिर पेपर मिल के रसूख के आगे सिस्टम झुक गया है।मामला सिर्फ पेड़ कटाई का नहीं, बल्कि सरकारी साख पर पड़े दाग का है। जब सरकार हरियाली बचाओ और ग्रीन बिलासपुर जैसे अभियान चला रही है, उसी वक्त सरकारी ज़मीन पर पेड़ों की हत्या यह साबित करती है कि नीतियाँ सिर्फ़ कागज़ पर हैं, ज़मीन पर नहीं।विडंबना ये है कि कागज़ बनाने के नाम पर ही पेड़ों का कत्लेआम हो रहा है। यही पेपर मिल जो कभी विकास का प्रतीक कही जाती थी, अब विनाश का प्रतीक बन चुकी है। पेड़ों को काटकर जिस कागज़ पर पर्यावरण संरक्षण के नारे लिखे जाते हैं, वही अब ढोंग की दस्तावेज़ी गवाही बन चुके हैं।ढेंका की यह हरियाली अब दम तोड़ रही है, और जंगलों का मौन सिस्टम की मिलीभगत पर चीख रहा है। हर गिरते पेड़ के साथ प्रशासन की विश्वसनीयता भी गिर रही है। यह सिर्फ़ पर्यावरण नहीं, नीतियों की हत्या भी है।अब सवाल यही है कब जागेगा वन विभाग।क्या किसी बड़े हादसे या मीडिया दबाव के बाद ही कार्रवाई होगी? जनता जवाब चाहती है।आखिर किसके इशारे पर ये हरियाली काटी जा रही है? क्या सरकारी मौन अब भ्रष्टाचार की नई हरी झंडी बन गया है।


